Friday, May 30, 2025
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गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का भव्य समापन

  •  धर्म, आस्था और संस्कृति का अद्भुत संगम

बाराबंकी। सरयू नदी के पावन तट पर स्थित 84 कोसी परिक्रमा मार्ग के प्राचीन और दिव्य स्थल गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का समापन बुधवार को अत्यंत भव्यता, धार्मिक उल्लास और वैदिक परंपराओं के साथ हुआ। यह आयोजन श्रद्धा, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना का अद्वितीय उदाहरण बना, जिसमें हजारों महोत्सव के अंतिम दिन वेदी पूजन, शिखर पूजन, न्याय वेदी पूजन, महा रुद्राक्ष अभिषेक और प्रतिष्ठा अनुष्ठान जैसे अत्यंत गूढ़ और महत्त्वपूर्ण वैदिक कर्मकांड विधिपूर्वक संपन्न हुए। समस्त वातावरण मंत्रोच्चार, धूप-दीप, और रुद्राभिषेक की दिव्यता से गुंजायमान रहा। विशेष रूप से रुद्राक्ष से किया गया महाभिषेक श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत अलौकिक और आध्यात्मिक अनुभव बना। राज्य मंत्री सतीश चंद्र शर्मा ने आचार्यों के सान्निध्य में भगवान गुप्तेश्वर महादेव का विधिपूर्वक रुद्राभिषेक किया। उन्होंने श्रद्धालुओं के साथ मिलकर हवन में आहुति अर्पित की और सभी के लिए शांति, समृद्धि और मंगल की कामना की। इसके पश्चात उन्होंने महाप्रसाद वितरण में स्वयं भाग लेते हुए भक्तों को प्रसाद प्रदान किया, जो उनकी विनम्रता और जनसंपर्क भावना का परिचायक रहा।

गुप्तेश्वर महादेव मंदिर, न केवल एक प्राचीन शिवधाम है, बल्कि अब यह तीव्र गति से एक उभरते हुए तीर्थ क्षेत्र के रूप में पहचान बना रहा है। इस धाम की विशेषता इसकी शांतिपूर्ण वातावरण, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक ऊर्जा है, जो हर भक्त को अंदर तक छू जाती है। यह मंदिर 84 कोसी परिक्रमा मार्ग का एक प्रमुख पड़ाव है, और वर्षों से साधकों, तपस्वियों और श्रद्धालुओं का आकर्षण बना हुआ है।

राज्य मंत्री ने भी अपने संबोधन में गुप्तेश्वर धाम की सराहना करते हुए कहा कि, “ऐसे पावन स्थलों का विकास समाज में श्रद्धा, एकता और सांस्कृतिक चेतना को सुदृढ़ करता है। गुप्तेश्वर धाम एक विशिष्ट आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र के रूप में उभर रहा है। यह न केवल बाराबंकी, बल्कि समूचे उत्तर भारत के धार्मिक मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान बना रहा है।”

मुख्य आचार्य का संदेश: शिवत्व को जीवन में उतारें

कार्यक्रम के अंतिम चरण में मुख्य आचार्य डॉ. महीधर शुक्ल महाराज ने गहन प्रवचन में ‘शिवत्व’ की व्याख्या करते हुए कहा, “शिव केवल पूजनीय देवता नहीं, बल्कि एक चेतना हैं – जीवन जीने की कला हैं। जब हमारे भीतर श्रद्धा होती है और हमारे कर्म संयमित होते हैं, तब ही शिवत्व प्रकट होता है।” उन्होंने युवाओं को धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जोड़ने की अपील की, ताकि उनके जीवन में संतुलन और समाज में संस्कार का विकास हो।पुरुषोत्तम तिवारी,कप्तान तिवारी, नंदकिशोर पांडेय, संत कुमार उपाध्याय, वीरेंद्र पांडेय, लीलाधर मिश्रा आदेश जैन, राकेश शुक्ला, शिवकुमार दीक्षित, लाल जी पांडेय, अशोक सिंह आदि लोग मौजूद रहे।

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